♦मुण्ड कपाल एवं अस्थि पंजर-मुण्ड या अस्थि पंजर हमारे वास्तविक सौन्दर्य का दर्पण है। चर्म व मांस से निर्मित सौन्दर्य सड़ जाता है, परन्तु मुण्ड व अस्थि पंजर चिरंजीवी है। मुण्ड अर्थात कपाल एक बिल्कुल निष्प्रयोज्य है परन्तु इसका भस्म औषधीय गुणों से भरपूर होता है अतः मुण्ड एवं अस्थि चेतन मानव को प्रतिपल उसके वास्तविक स्वरूप का ज्ञान कराता है। प्रश्न उठता है कि एक औघड़ खप्पर में क्यों खान-पान करता है क्योंकि इसका कोई प्रयोजन नही होता है। योगदर्शन में ब्रह्मरंध का स्थान होता है जिसमें प्राणवायु का निवास होता है। कपाल इसका मुख्य केन्द्र होता है।
♦शव व शव साधना– अघोर पंथ के विचारधारा के अनुसार ईश्वर के अंश का निवास शरीर में होता है अतः शव पृथ्वी की सबसे पवित्र सामग्री होती है। शव साधना किसी सब द्वारा ही संभव है। अपने स्थूल शरीर के प्राण वायु को अन्य शव में स्थापित कर अपने शरीर को शववत् आभास करने की स्थिति ही शवसाधना है। अघोर पद की प्राप्ति के लिए इस क्रिया का अभ्यास अति आवश्यक है।
♦श्मशान – श्मशान वह स्थल है, जहाँ प्राणवायु जैसी अनुपम व पवित्र शक्ति के निवास स्थान की अखण्ड आहुति होती है अतः अघोर पंथ में श्मशान अति पवित्र कुण्ड का नाम है जहां निरंतर कोई न कोई अपने माता, पिता भाई बहन जैसे प्रियजनों के स्थूल शरीर की आहुति करता है। कुकृत्यगामी भी श्मशान के इस सत्य को देखकर वैराग्य की स्थिति में आ जाता है।