कुलदेवी का निषेध “गृहदोष” का मूल कारण

कुलदेवी का महत्व

जै माई की   
आज मैं आपको बतलाऊंगा की आगम की दीक्षा जब आप लेते है । तो सबसे पहले हमारे घर के जो कुल देवता है, जैसे कि हमारी कुलदेवी कौन है , कहाँ है , किस परिस्थिति में है ।
इन सब विषयों का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है । कभी -कभी यह होता है कि जब हम आगम की दीक्षा प्राप्त करते हैं। तो कुछ समयान्तराल बाद घर में तरह – तरह की दिक्कतें सामनें आनें लगती है।
आज प्रायः सभी स्थानों में यही देखने को मिलता है कि गुरुजनो द्वारा पैसे लेकर विद्याओं की दीक्षा तो प्रदान कर दी जाती है । लेकिन शिष्य के कुल में कौन-कौन से दोष है , उसके कुल कि कुलदेवी कौन है , कहाँ हैं तथा किस परिस्थिति में है यह जानकारी कौन बताएगा शिष्य को ।
वर्तमान समय दैविक शक्तियों तथा महाविद्याओं के व्यापारीकरण का है । पंडालवादी चाण्डाल वेषधारी गुरुओं का ही साम्राज्य सर्वत्र व्याप्त हो रहा है।

राजसत्ता में बैठे लोगों के दुःखों का मूल कारण

राजसत्ता में आसीन व्यक्तियों के घर – परिवार में प्रायः असह्य दुःख एवं पीड़ा की अत्यंत कष्टव्यापी ऊर्जा का वातावरण देखनें को मिलता है जिसका मूल कारण है उनके द्वारा क्षण-प्रतिक्षण अपनी कुलशक्ति की अवहेलना और इस मिथ्यायुक्त विचारधारा से युक्त होना की मेरा कोई क्या कर लेगा । मेरे पास तो पद और power है । लेकिन उन्हें यह नहीं ज्ञात कि जिस पद और power पर उन्हें इतना अभिमान है उसका दयारा मात्र लौकिक जगत की शरीरी आत्माओं तक ही व्याप्त है, पर सूक्ष्मजगत जगत उन अशरीरिय आत्माओं का क्या?… जिनके माध्यम से आपके ऊपर प्रहार किया जाता है जो उतपन्न करते भाँति-भाँति के कष्ट ,व्याधि ,रोग ,महामारी,पीड़ा की वह विनाशकारी ऊर्जा जिसमे आप और आपका परिवार घुट-घुटकर खत्म हो जाता है। इन सब झंझावतों से यदि आपको बचना है तो अपनी कुल की कुलशक्ति की उपासना सही पद्धति से करें । क़्योंकि यदि इस परिस्थिति में काल रूपी शत्रु के गाल में सामने से आपको कोई बचा सकता है तो वह है मात्र आपकी कुलदेवी।

रामायण काल में कुलदेवी की प्रधनता

हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि युगों -युगों से राजाओं के शक्ति का मूलकारण उनके कुल की कुलशक्ति ही रही है । इसलिए तो मेघनाद ने लंका में प्रवेश के लिए व्याकुल “काल” के शमन के लिए असुर कुल की महान शक्ति अपनी कुलदेवी निकुंबला की साधना असुर गुरु के शुक्राचार्य के द्वारा बताई विधि के अनुसार करना प्रारम्भ कर दिया ,जिसके सम्पन्न हो जाने पर स्वयं ब्रम्ह को भी मेघनाद के समक्ष पराजय को स्वीकार करना पड़ता । अंत मे मैं इतना ही स्पष्ट करना चाहूँगा कि

काल के कपाल पर अमरत्व का तांडव करने वाली शक्ति ही कुलशक्ति है जिसके समक्ष न ही यम के दण्ड की शक्ति टिकती और न ही ब्रम्हा के नियति की लेखनी✍️…….

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