पंचाग्नि धूमावती साधना

‘धूमावती धूम्रवर्णा धूम्रपान परायणा ।  धूम्राक्षमथिनी धन्या धन्यस्थान वासिनी ।। ”                  

धूम्रवर्णा धूम्रपान परायणा :- योगाग्निरूपी  धूम्रपान, योग एवं तंत्र की इतनी उच्च एवं गहन साधना जिसमे योगी एवं साधक हठयोग की क्रिया के द्वारा पंचगनी में सूक्ष्मरूप से समाहित आपस में एक-दूसरे में विलेययुक्त तत्वों का संधान करता है। जैसे पृथ्वी तत्व का जल तत्व में विलेय और जल तत्व का अग्नि तत्व में विलेय तथा अग्नि का वायु में और अंत में वायु तत्व का आकाश तत्व में विलेय कर इन समस्त तत्वों का संधान करते हुए हठयोग की क्रिया के द्वारा षट्चक्र भेदन करने वाला योगी साधक इस पंचाग्नि सिद्धि को प्राप्त कर पता है। 

इस सिद्धि के फलस्वरूप शक्तियां शून्य से किसी वस्तु को प्रकट करना , लोक-लोकांतर में कहीं सुदूर घट रही घटना को देखने की क्षमता का विकास होना , भूत-भविष्य में झाँक कर अतीत के समस्त रहस्यों का पता लगा लेना तथासम्धी के अवस्था में रहकर किसी भी सौरमंडल , ग्रह ,नक्षत्र में भ्रमण कर ज्ञान प्राप्त करना। 

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