Dhumavati के अघोर नाम का रह्स्य
[Dhumavati Name Series Part-2 ]
अघोराचार संतुष्टा अघोराचार मण्डिता। अघोरमंत्र संप्रीता अघोरमंत्र पूजिता।।
जै माई की ♦यदि ऊपर वर्णित देवी के नामों की व्याख्या की जाए तो उनमें मूल रूप से जो शब्द प्रयुक्त हो रहा है वह है “अघोर ”
अब हमारें अंतर्मन में प्रश्न यह उठता है कि क्या है Aghor ?… शायद हममें से बहुत से लोगों को यहीं ज्ञात होगा की समाज में फैली Occultism ( तंत्रविद्या ) के नाम पर फैला पाँखंडवाद ही अघोर है, तो संसार में हमसे बड़ा मुर्ख औरअज्ञानी कोई न होगा। यदि अघोर को हमें जानना है तो सबसे पहले हमारे मस्तिष्क को ज्ञान होना चाहिए चितासाधना के विषय में।
चितासाधना (Funeral Accomplish )
चिता साधना तमोगुणी तंत्र की अद्भुत और गम्भीर साधना है जो सबके बस की बात नहीं है। साधक में निरपेक्षता तटस्थता द्रष्टा और निर्लिप्तता का भाव गहन होना चाहिए। एक उच्चकोटि के अघोरमार्गीय साधक में ऐसा ही भाव रहता है। इन भावों के कारन अघोर साधक मौन एकांतवासी और अंतर्मुखी होता है। यही उसका सबसे बड़ा गुण है। जिन अघोरियों से आज हम सब परिचित है, वे सब अघोरी नहीं अपितु अघोरी का पाखंडी रूप है। इनसे संसार, समाज और परिवार का विनाश ही होता है और समाज में अघोर तंत्र के प्रति घृणा की भावना भी उत्पन्न होती है। यहाँ यह बतला देना आवश्यक है की तंत्र की जितनी भी साधनाएँ हैं – अघोरमार्गीय साधना अत्यंत विकट है। असफलता पग-पग पर सुरसा की भांति साधक को अपना ग्रास बनाने के लिए तैयार रहती है और यही कारण है कि अघोरमार्ग की साधना में सिद्धि लाभ के लिए कई जन्म लग जाते है।
अघोर और कापालिक मार्ग में परस्पर पूरकता :-
जब हम अघोर की चर्चा करतें है तो भला कपालिक मार्ग कैसे पीछे छूट सकता है। आदि नहीं बल्कि अनादि काल से ही अघोरमार्ग एवं कापालिक मार्ग परस्पर समरूप एवं पूरक रहें है। केवळ आमनाय भेद के कारण लोग इन्हें भिन्न समझतें आये हैं। लेकिन सिद्धांत दोनों के एक ही है। अघोर मार्ग के इष्ट शिव ही कापालिक मार्ग में परिणित होकर भैरव बन जाते है।