अघोर मार्ग का रहस्य

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अघोर एवं धूमावती

Tantra शास्त्रों के अनुसार भगवती धूमा की आराधना एवं उपासना के कई मार्ग विद्यमान है जिनमें से प्रमुख दो मार्ग प्रचलित है। (1.) श्रीविद्याअंतर्गते Dhumavati Upasna , (2.) अघोर मार्ग के अंतर्गत आने वाली धूमावती उपासना । आज आपको अघोर मार्ग के विषय और अघोरियों के कुछ रहस्यो से अवगत कराया जाएगा ।
♦कालावस्त्र– काला रंग सबसे कुरुप माना जाता है व इस रंग में सारे रंग छिप जाते है। इस रंग में कुछ दिखाई नहीं पड़ता अतः काला वस्त्र ईश्वर के निराकार स्वरूप को प्रदर्शित करता है।
♦मदिरा सेवन– मदिरा का सेवन साधक के मस्तिष्क को स्थिर करता है व अघोरी पथिक के जीवन गाथा को भुलाने में सहायक होता है। साथ ही साथ अघोर पद स्थित मनुष्य परमानन्द के सच्चिदानन्द स्वरूप मुद्रा में लीन रहता है। अतः अपने इस स्थिति पर पर्दा डालकर ख्याति और प्रशस्ति से बचा रहता है।
♦मांस सेवन-अघोर पंथ में उल्लू कौआ, सुअर, मनुष्य व चमगादड़ के मांस को महाप्रसाद कहा जाता है। जिसका सेवन व पाचन अति दुर्लभ है साथ ही इन पदार्थों के भोजन से अपने आपको अशिव पदार्थों को ग्रहण करने योग्य बनाता है जिस प्रकार महादेव ने प्राणघातक हलाहल का पान किया था।

कपाल या मुंड धारण करना

♦मुण्ड कपाल एवं अस्थि पंजर-मुण्ड या अस्थि पंजर हमारे वास्तविक सौन्दर्य का दर्पण है। चर्म व मांस से निर्मित सौन्दर्य सड़ जाता है, परन्तु मुण्ड व अस्थि पंजर चिरंजीवी है। मुण्ड अर्थात कपाल एक बिल्कुल निष्प्रयोज्य है परन्तु इसका भस्म औषधीय गुणों से भरपूर होता है अतः मुण्ड एवं अस्थि चेतन मानव को प्रतिपल उसके वास्तविक स्वरूप का ज्ञान कराता है। प्रश्न उठता है कि एक औघड़ खप्पर में क्यों खान-पान करता है क्योंकि इसका कोई प्रयोजन नही होता है। योगदर्शन में ब्रह्मरंध का स्थान होता है जिसमें प्राणवायु का निवास होता है। कपाल इसका मुख्य केन्द्र होता है।
♦शव व शव साधना– अघोर पंथ के विचारधारा के अनुसार ईश्वर के अंश का निवास शरीर में होता है अतः शव पृथ्वी की सबसे पवित्र सामग्री होती है। शव साधना किसी सब द्वारा ही संभव है। अपने स्थूल शरीर के प्राण वायु को अन्य शव में स्थापित कर अपने शरीर को शववत् आभास करने की स्थिति ही शवसाधना है। अघोर पद की प्राप्ति के लिए इस क्रिया का अभ्यास अति आवश्यक है।
♦श्मशान – श्मशान वह स्थल है, जहाँ प्राणवायु जैसी अनुपम व पवित्र शक्ति के निवास स्थान की अखण्ड आहुति होती है अतः अघोर पंथ में श्मशान अति पवित्र कुण्ड का नाम है जहां निरंतर कोई न कोई अपने माता, पिता भाई बहन जैसे प्रियजनों के स्थूल शरीर की आहुति करता है। कुकृत्यगामी भी श्मशान के इस सत्य को देखकर वैराग्य की स्थिति में आ जाता है।
♦बलि-बलि का अर्थ समर्पण होता है परन्तु कभी-कभी पशु, पक्षी, अथवा अपनी प्रिय वस्तु की बलि का प्रावधान है अघोर पंथ के उद्भव के पूर्व सतयुग से जब महाराज हरिश्चन्द्र ने अपनी पत्नी व बच्चे को बेच दिया व स्वयं श्मशान पर नौकरी करते थे। अब प्रश्न उठता है कि वह श्मशान था कहाँ? इसका ज्वलंत उदाहरण है काशी के केदारखण्ड में स्थित अघोरीपीठ संतकीनाराम आश्रम जहां के “क्रीं कुण्ड” के तट पर वह श्मशान था जहां महाराजा हरिश्चन्द्र की परीक्षा हुई थी। अघोर पंथ शैव सम्प्रदाय का एक महत्वपूर्ण व दुश्कर शिवलोकगामी मार्ग है। एक अघोरी अशिव ग्रहण करके शिव प्रकट करता है व जगत कल्याण य समाज कल्याण उसका मुख्य ध्येय होता है। अघोर मार्ग एक कठिन और दुश्कर साधना मार्ग है।

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